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Tuesday, 10 September 2019

भरी महफ़िल में जब भी याद उसकी आती है रोकू कितना भी खुद को आँख भर ही जाती है

रूप की चांदनी से सिन्धु ज्वार भरता है 
तुम्हे पता ही नहीं कोन तुमपे मरता है 
सामने दर्पणों के सबको संबरते देखा 
तेरे चेहरे को देख आईना संबरता है 

भरी महफ़िल में जब भी याद उसकी आती है 
रोकू कितना भी खुद को आँख भर ही जाती है 
हाल-ए- दिल पूछ लो एक बार अब सनम मुझसे 
हाल-ए- दिल पूछ लो एक बार अब सनम मुझसे
रात की चांदनी भी मुझको अब जलाती है  

चाँद के साथ टहलता था स्वप्न गढ़ता था 
अपनी तन्हाई के संग छत पे जब भी चढ़ता था 
दिन भी कॉलेज के क्या खूब बताऊँ कैसे 
दिन भी कॉलेज के क्या खूब बताऊँ कैसे 
मैं चांदनी मैं तेरे ख़त डुबोके पढ़ता था 



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