रूप की चांदनी से सिन्धु ज्वार भरता है
सामने दर्पणों के सबको संबरते देखा
तेरे चेहरे को देख आईना संबरता है
भरी महफ़िल में जब भी याद उसकी आती है
रोकू कितना भी खुद को आँख भर ही जाती है
हाल-ए- दिल पूछ लो एक बार अब सनम मुझसे
हाल-ए- दिल पूछ लो एक बार अब सनम मुझसे
रात की चांदनी भी मुझको अब जलाती है
चाँद के साथ टहलता था स्वप्न गढ़ता था
अपनी तन्हाई के संग छत पे जब भी चढ़ता था
दिन भी कॉलेज के क्या खूब बताऊँ कैसे
दिन भी कॉलेज के क्या खूब बताऊँ कैसे
मैं चांदनी मैं तेरे ख़त डुबोके पढ़ता था
Very nice
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